TTN Desk
नई शिक्षा नीति को लागू करने के क्रम में केंद्र सरकार ने अब एक और बड़ा बदलाव किया है. शिक्षा मंत्रालय ने साल के अंत में परीक्षा में फेल होने वाले कक्षा 5 और 8 के छात्रों के लिए अनुत्तीर्ण न करने की नीति’ को खत्म कर दिया है. इस फैसले का मतलब हुआ कि नए वर्ष 2025 से कक्षा 5वीं और 8वीं की वार्षिक परीक्षा में फेल होने वाले छात्रों को अब पास नहीं किया जाएगा.
O फेल हुए स्टूडेंट्स तो आगे नहीं होंगे प्रमोट
राजपत्र अधिसूचना के अनुसार, नियमित परीक्षा के आयोजन के बाद यदि कोई बच्चा फेल रहता है, तो उसे परिणाम की घोषणा की तारीख से दो महीने की अवधि के भीतर अतिरिक्त निर्देश और पुनः परीक्षा का अवसर दिया जाएगा. अधिसूचना में कहा गया, यदि पुनः परीक्षा में बैठने वाला छात्र पदोन्नति (अगली कक्षा में जाने की अर्हता) के मानदंडों को पूरा करने में असफल रहता है, तो उसे पांचवीं या आठवीं कक्षा में ही रोक दिया जाएगा.
O किन-किन स्कूलों में लागू होगा ये फैसला
हालांकि, सरकार ने स्पष्ट किया है कि किसी भी बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक स्कूल से निष्कासित नहीं किया जाएगा. शिक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, यह अधिसूचना केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों और सैनिक स्कूलों सहित केंद्र सरकार द्वारा संचालित 3,000 से अधिक स्कूलों पर लागू होगी. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, चूंकि स्कूली शिक्षा राज्य का विषय है, इसलिए राज्य इस संबंध में अपना निर्णय ले सकते हैं.
0 16 राज्य पहले ही खत्म कर चुके हैं प्रमोट करने वाली नीति
बता दें कि 16 राज्यों और दिल्ली सहित दो केंद्र शासित प्रदेशों ने पहले ही इन 5वीं और 8वीं कक्षाओं के लिए अनुत्तीर्ण न करने की नीति’ को खत्म कर दिया है. अधिकारी ने बताया कि हरियाणा और पुडुचेरी ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है. जबकि शेष राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने नीति को जारी रखने का फैसला किया है.
O इसलिए किया सरकार ने पॉलिसी में बदलाव
2016 में सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन यानी CABE ने ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट मिनिस्ट्री को ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ हटाने का सुझाव दिया था। CABE ने कहा कि इस पॉलिसी के वजह से स्टूडेंट्स के सीखने का स्तर गिर रहा है।
नो डिटेंशन पॉलिसी के अंतर्गत स्टूडेंट्स का मूल्यांकन करने के लिए टीचर्स के पास पर्याप्त साधन नहीं थे। ज्यादातर मामलों में स्टूडेंट्स का मूल्यांकन ही नहीं किया जाता था। देशभर में 10% से भी कम स्कूलों में पॉलिसी के हिसाब से टीचर्स और इंफ्रास्ट्रक्चर पाया गया। पॉलिसी में मुख्य रूप से एलिमेन्ट्री एजुकेशन में स्टूडेंट्स का एरोल्मेंट बढ़ाने पर फोकस किया गया जबकि बेसिक शिक्षा का स्तर गिरता रहा। इससे स्टूडेंट्स पढ़ाई को लेकर लापरवाह हो गए क्योंकि अब उन्हें फेल होने का डर नहीं था।
O आधे बच्चे नहीं पढ़ पाते अगली कक्षा का सिलेबस
2016 की एनुअल एजुकेशन रिपोर्ट के अनुसार क्लास 5वीं के 48% से कम स्टूडेंट्स दूसरी (2) क्लास का सिलेबस पढ़ पाते हैं। ग्रामीण स्कूलों में आठवीं क्लास के सिर्फ 43.2% स्टूडेंट्स सिम्पल डिवीजन कर सकते हैं। 5वीं में चार में से सिर्फ एक स्टूडेंट अंग्रेजी का वाक्य पढ़ सकता है। कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने प्रारंभिक शिक्षा पर आर्टिकल 16 के इस असर को लेकर चिंता जताई थी।
शिक्षा पर टीएसआर सुब्रमण्यम कमेटी और CABE के तहत बनाई गई वासुदेव देवनानी समिति ने भी नो डिटेंशन पॉलिसी को रद्द करने की सिफारिश की थी।
O इसलिए लागू की थी नो डिटेंशन पॉलिसी
नो डिटेंशन पॉलिसी राइट टू एजुकेशन 2009 का हिस्सा थी। ये सरकार की पहल थी जिससे भारत में शिक्षा की स्थिती में सुधार हो सके। इसका उद्देश्य था कि बच्चों को शिक्षा के लिए बेहतर माहौल दिया जा सके ताकि वो स्कूल आते रहें। फेल होने से स्टूडेंट्स की आत्मसम्मान को ठेस पहुंच सकती हैं। साथ ही फेल होने से बच्चे शर्म भी महसूस करते हैं जिससे पढ़ाई में वो पिछड़ सकते हैं। इसलिए नो डिटेंशन पॉलिसी लाई गई जिसमें 8वीं तक के बच्चों को फेल नहीं किया जाता।
O 2018 में लोकसभा में बिल पास हुआ था
जुलाई 2018 में लोकसभा में राइट टु एजुकेशन को संशोधित करने के लिए बिल पेश किया गया था। इसमें स्कूलों में लागू ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को खत्म करने की बात थी। इसके अनुसार 5वीं और 8वीं क्लास के स्टूडेंट्स के लिए रेगुलर एग्जाम्स की मांग की गई थी। इसी के साथ फेल होने वाले स्टूडेंट्स के लिए दो महीने के अंदर री-एग्जाम कराने की भी बात थी।
2019 में ये बिल राज्य सभा में पास हुआ। इसके बाद राज्य सरकारों को ये हक था कि वो ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ हटा सकते हैं या लागू रख सकते हैं। यानी राज्य सरकार ये फैसला ले सकती थीं कि 5वीं और 8वीं में फेल होने पर छात्रों को प्रमोट किया जाए या क्लास रिपीट करवाई जाए।