जयंती विशेष: जानिए जलाराम बापा और उनके उस मंदिर के बारे में जहां नहीं लिया जाता कोई दान फिर भी 25 वर्ष से मिलता है हजारों को निःशुल्क भोजन,जयंती पर कोरबा में भी निकलेगी शोभायात्रा

TTN Desk

O जलाराम जयंती उत्सव 8 नवंबर को, टीपी नगर से निकलेगी शोभायात्रा,डीडीएम रोड स्थित मंदिर में होगा आयोजन

 

 

संत श्री जलाराम मंदिर ,डीडीएम रोड कोरबा

श्री जलाराम बापा मंदिर,वीरपुर,गुजरात…जहां दान पेटी ही नहीं और भक्तों से दान न देने की विशेष प्रार्थना का लगा हुआ बोर्ड

 

O स्थापना पूजन, भजन,आरती के बाद रात में होगा भंडारा प्रसाद,जलाराम बापा की मन्नत से मुरादें होती है पूरी

कोरबा। श्री जलाराम सेवा समिति,गुजराती समाज द्वारा जलाराम मंदिर में संत श्री जलाराम बापा का जयंती उत्सव 08 नवंबर को मनाया जाएगा। यहां के श्री जलाराम मंदिर में श्री राम दरबार,गणेश जी,हनुमान जी के साथ संत श्री जलाराम बापा की सुंदर प्रतिमा स्थापित है।वहीं मंदिर परिसर में सुंदर शिवालय भी है।गुजराती समाज ही नहीं वरन अन्य समुदाय के लोग भी मंदिर के प्रति गहन आस्था रखते है।मान्यता है कि जलाराम बापा के समक्ष सच्चे मन से रखी गई मन्नत से भक्तों की सारी मुरादें पूरी होती है।

ये कार्यक्रम होंगे कोरबा के श्री जलाराम मंदिर में

08 नवंबर शुक्रवार को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर में विराजित श्री विग्रहो का वस्त्र बदला जाएगा, जिसके दाता स्व. जयंती भाई की स्मृति में उनके पिता देवजी भाई पटेल व परिवार अग्रसेन मार्ग कोरबा होंगे। सुबह 9.30 बजे जलाराम बापा का अभिषेक पूजन, अखंड दीप प्रागट्य किया जाएगा। दोपहर 3 बजे शोभायात्रा नंदलाल भाई जेठवा के प्रतिष्ठान सेफ एक्सप्रेस,होटल सेंटर प्वाइंट के पास, स्टेडियम रोड टीपी नगर से डीडीएम रोड स्थित श्री जलाराम मंदिर तक निकाली जाएगी। शाम 5 बजे संयुक्त सभा, वार्षिक आय-व्यय की प्रस्तुति के बाद दाताओं का आभार व्यक्त किया जाएगा। शाम 6.30 बजे दैनिक पूजा-आरती पश्चात जलाराम बापा की महाआरती होगी। रात्रि 7.30 बजे से महाप्रसाद भंडारा आयोजित होगा। महाप्रसाद भंडारा के दाता पीयूष सीट मेकर्स के संचालक पीयूष भाई नितिन भाई राठौड़ व कल्पेश भाई नितिन भाई राठौड़ होंगे। जलाराम सेवा समिति के किशोर भाई पटेल ने गुजराती समाज के सभी बंधुओं एवं श्रद्धालुओं से सपरिवार आयोजन में शामिल होने आग्रह किया है।

विश्व का पहला मंदिर जिसने 25 वर्ष से नहीं लिया कोई दान,फिर भी अन्नसेवा जारी

ऐसे समय में जब देश दुनिया के मंदिरों,आस्था स्थलों में दान के लिए होड़ मची हुई है, राजकोट से लगभग 52 किलोमीटर दूर वीरपुर में स्थित जलाराम बापा मंदिर द्वारा दान न लेने के संकल्प को 25 साल पूरे करने जा रहा है।मंदिर ने 9 फरवरी 2000 से नकद या वस्तु के रूप में दान स्वीकार करना बंद कर दिया था, उसके बावजूद मंदिर ट्रस्ट अपने सेवा कार्यों के साथ साथ मंदिर में 365 दिन निशुल्क भंडारा प्रसाद का वितरण दोनों टाइम करता है।जिसमें प्रतिदिन औसतन 5 हजार लोग को निःशुल्क भोजन प्रेम के साथ पंगत में बैठा कर करवाया जाता है।
जलाराम बापा परिवार के वंशज वीरपुर के ठक्कर परिवार के सदस्य बताते है कि , “हमने पिछले 25 वर्षों से दान स्वीकार करना बंद कर दिया है। हम केवल लोगों को पूरे दिल से और ईमानदारी से भोजन कराना चाहते हैं।”

अपने अपने क्षेत्रों में भक्ति और सेवा में करें दान का उपयोग

जब ट्रस्ट द्वारा दान स्वीकार न करने के कारण के बारे में पूछा गया तो एक ट्रस्टी ने चुटकी लेते हुए कहा, “दान स्वीकार न करने का कोई कारण नहीं हो सकता। हम केवल यही चाहते हैं कि लोग आशीर्वाद लें, प्रसाद ग्रहण करें और संतुष्ट होकर लौटें। जो कोई भी पैसा या कोई अन्य दान देता है, उनसे अनुरोध है कि वे उसे वापस ले लें और उसका उपयोग जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने अपने क्षेत्र में भक्ति और सेवा में करें।”

विनम्रता पूर्वक दान से किया इंकार

ट्रस्टी और पुजारी भक्तों से विनम्रतापूर्वक अपना दान वापस लेने का अनुरोध करते देखे गए।यहां तक ​​कि पहले भी दालें, अनाज, तेल, गुड़ आदि दान गुमनाम थे।

वीरपुर मंदिर में 365 दिन दोनों टाइम भंडारा

औसतन 4,000-5,000 लोग मंदिर में गांठिया, बूंदी, सब्जी और खिचड़ी-कढ़ी का प्रसाद ग्रहण करते हैं।ट्रस्ट के अनुसार, जलाराम बापा ने वीरपुर में अन्न क्षेत्र की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य पूजा करने आए सभी भक्तों को भोजन कराना था। ट्रस्ट के संचालकों ने कहा, “हम जलाराम बापा द्वारा शुरू की गई इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं और पूरे 365 दिन अन्न क्षेत्र चलाते हैं।”

जानिए संत श्री जलाराम बापा के बारे में

संत श्री जलाराम बापा का जन्म सन्‌ 1799 में गुजरात के राजकोट जिले के वीरपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रधान ठक्कर और माँ का नाम राजबाई था। बापा की माँ एक धर्म प्राण महिला थी, जो साधु-सन्तों की बहुत सेवा करती थी। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर संत रघुवीर दास जी ने आशीर्वाद दिया कि उनका दुसरा प़ुत्र जलाराम ईश्वर तथा साधु-भक्ति और सेवा की दुनिया में मिसाल बनेगा।

16 साल की उम्र में श्री जलाराम का विवाह वीरबाई से हुआ। परन्तु वे वैवाहिक बन्धन से दूर होकर सेवा कार्यो में लगना चाहते थे। जब श्री जलाराम ने तीर्थयात्राओं पर निकलने का निश्चय किया तो पत्नी वीरबाई ने भी बापा के कार्यो में अनुसरण करने का संकल्प दिखाया। 18 साल की उम्र में जलाराम बापा ने फतेहपूर के संत श्री भोजलराम को अपना गुरू स्वीकार किया।

निरंतर 205 वर्षों से प्रतिदिन हजारों को निःशुल्क भोजन प्रसाद का वितरण

गुरू ने गुरूमाला और श्री राम नाम का मंत्र लेकर उन्हें सेवा कार्य में आगे बढ़ने के लिये कहा, तब जलाराम बापा ने ‘सदाव्रत’ नाम की भोजनशाला बनायी जहाँ 24 घंटे साधु-सन्त तथा जरूरतमंद लोगों को भोजन कराया जाता था। इस जगह से कोई भी बिना भोजन किये नही जा पाता था।
माघ शुक्ल द्वितीया, विक्रम संवत १८७६ को श्री जलाराम बापाने सदाव्रत (भंडारा, लंगर) शुरु किया उसे इस साल 205 साल पूरे हुए।श्री जलाराम मंदिर, विरपुर में दान पेटी का अस्तित्व ही नहीं है और वहां पर दोनो समय भक्तों को “प्रसाद” (भोजन, लंगर, भंडारा) उपलब्ध कराया जाता है। श्री जलाराम मंदिर, विरपुर ने एक नई मिसाल पेश की है। आप चाह कर भी कोई भेंट या पैसे का चढावा नहीं कर सकते।