विशेष:आजीवन व्हील चेयर पर रहे इस प्रोफेसर को जेल में ही रखना चाहती थी सरकार,बार बार दी रिहाई को चुनौती

TTN Desk

माओवादियों से कथित लिंक के एक मामले में महज सात महीने पहले अदालत से बरी हुए दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा ( गोकरकोंडा नागा साईबाबा ) का शनिवार रात नौ बजे निधन हो गया. 54 वर्षीय साईबाबा पित्ताशय के संक्रमण से पीड़ित थे. दो सप्ताह पहले उनका ऑपरेशन हुआ था.

ऑपरेशन के बाद से वह स्वास्थ्य संबंधी जटिल समस्याओं से जूझ रहे थे. पिछले 20 दिनों से वह हैदराबाद के निजाम्स इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एनआईएमएस) में भर्ती थे.बचपन में ही बीमारी से निशक्तता के शिकार हुए साईबाबा फिर कभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सके,वे आजीवन व्हीलचेयर पर रहे किंतु हौसले उनके बड़ी से बड़ी कठिनाइयों के पहाड़ भी पार करने वाले थे।उन्होंने हमेशा अपने नक्सली लिंक से इंकार किया।दस सालों तक जेल से बाहर नहीं आ पाए इस प्रोफेसर को बॉम्बे हाईकोर्ट के आखरी फैसले में भी बरी किया गया।उन पर लगे आरोपों को सरकार की और से अभियोजन पक्ष कभी सिद्ध नहीं कर पाया और हर बार उसे कोर्ट में चुनौती दी और रिहाई में बाधा आई।आठ महीने पहले हुई उनकी रिहाई को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।आम लोगों के मानवाधिकार को ले कर संघर्ष करने वाले प्रोफेसर जीएन साईबाबा एक तरह से सरकार को कांटे की तरह चुभते रहे।

जेल से रिहा होने पर कहा था यकीन नहीं हो रहा

जेल से रिहा होने के बाद विभिन्न मीडिया आउटलेट्स से बात करते हुए साईबाबा ने अपने जेल के बुरे अनुभव को सिलसिलेवार बताया था।उन्होंने तब कहा कि जेल के अंदर कई मेडिकल इमरजेंसी हुईं, पर उन्होंने मुझे सिर्फ पेनकिलर्स दिए और कुछ टेस्ट कराए। मैं अब तक मान नहीं पा रहा हूं कि मैं आजाद हो गया हूं। मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं अब तक उसी जेल में हूं।

मां के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाए

साईबाबा ने कहा कि मेरा परिवार सिर्फ उम्मीद पर जिंदा था। मुझे इस बात का अफसोस है कि मैं अपनी मां से उनके आखिरी समय में नहीं मिल पाया। मुझे उनकी अंतिम संस्कार की रस्में भी पूरी करने की इजाजत नहीं दी गई। मुझे आतंकवादी कहा गया, मेरे परिवार पर लांछन लगाया गया।

जेल में झेली तकलीफ

साईबाबा ने कहा कि जेल में उन्हें बहुत छोटी सी जगह में रहने को मजबूर होना पड़ा। जेल में 1500 लोगों की जगह में 3000 लोगों को रखा गया था। वहां सोने के लिए भी पर्याप्त जगह नहीं थी। बिना व्हीलचेयर के मुझे टॉयलेट जाने, नहाने यहां तक कि अपने लिए पानी का एक गिलास भी लाने में परेशानी होती थी।

नक्सलियों से संबंध के आरोप में हुई थी गिरफ्तारी

नक्सलियों से कथित संबंध रखने के शक में 2014 में वे गिरफ्तार हुए थे। महाराष्ट्र की गढ़चिरौली कोर्ट ने मार्च 2017 में साईबाबा को दोषी ठहराया था। 5 मार्च को बॉम्बे हाईकोर्ट ने साईबाबा और 5 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने उनकी उम्रकैद की सजा रद्द कर दी है। उन्हें दोषसिद्धि के खिलाफ अपील करने की इजाजत भी दी गई है।

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने पहले भी 14 अक्टूबर 2022 को साईबाबा को बरी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने अगले ही दिन इस फैसले पर रोक लगा दी थी।

जानिए क्या क्या हुआ 2014 में गिरफ्तारी से 2024 में रिहाई तक

2014: माओवाद से कनेक्शन के आरोप में गिरफ्तारी

2013 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में पुलिस ने माओवाद से जुड़े महेश तिर्की, पी. नरोटे और हेम मिश्रा को गिरफ्तार किया। इन्हीं तीनों से पूछताछ में जीएन साईबाबा का नाम आया, जिसके बाद पुलिस उनके खिलाफ कोर्ट गई। माओवाद से कनेक्शन के आरोप में 9 मई 2014 को दिल्ली आवास से साईबाबा को गिरफ्तार किया गया। 2015 में साईबाबा के खिलाफ UAPA के तहत केस दर्ज कर कार्यवाही शुरू की गई।

2017: गढ़चिरौली कोर्ट ने दोषी ठहराया

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली कोर्ट ने 2017 में साईबाबा और पांच अन्य को आरोपियों को UAPA और भारतीय दंड संहिता के तहत दोषी ठहराया। साईबाबा और चार अन्य को आजीवन कारावास की सजा और एक को दस साल की कैद की सजा सुनाई गई थी। गढ़चिरौली कोर्ट के फैसले के खिलाफ साईबाबा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर की।

2022: हाईकोर्ट से बरी, सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई

14 अक्टूबर 2022 को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने साईबाबा को बरी कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि तुरंत साईबाबा को जेल से रिहा कर दिया जाए। हाईकोर्ट से जीएन साईबाबा के बरी होने के बाद महाराष्ट्र सरकार की ओर से तुषार मेहता जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में गए।
मेहता ने कहा- टेक्निकल आधार पर साईबाबा को रिहा किया गया है। वे अगर जेल से बाहर आते हैं तो देश के लिए ये खतरनाक होगा। साईबाबा का माओवादियों से कनेक्शन है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अर्जेंट सुनवाई के लिए आप चीफ जस्टिस के पास जाइए, हम रिहाई पर रोक नहीं लगा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अगले ही दिन 15 अक्टूबर को साईबाबा को बॉम्बे हाईकोर्ट से बरी किए जाने के फैसले पर रोक लगा दी थी। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा था कि मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है, इसलिए अभी साईबाबा जेल से बाहर नहीं निकल पाएंगे।

2024: बॉम्बे हाईकोर्ट बरी किया

मार्च 2024 में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने उन्हें रिहा कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अभियोजन पक्ष उनपर लगे आरोपों को सिद्ध नहीं कर पाया है। इसलिए उनकी उम्रकैद की सजा नहीं दी जा सकती है। जेल से बाहर आने के बाद साईबाबा ने कहा था कि वे बहुत बीमार हैं। वे इलाज करवाने के बाद ही बोलने लायक हो पाएंगे।