TTN Desk
मुंबई।रतन टाटा को अंतिम यात्रा पर ले जाने से पहले सलामी दी गई।
टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन नवल टाटा का 86 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने बुधवार देर रात करीब 11 बजे अंतिम सांस ली। वे मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल की इंटेंसिव केयर यूनिट (ICU) में एडमिट थे और उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे।
वर्ली श्मशान घाट में हुआ अंतिम संस्कार
टाटा का पार्थिव शरीर नरीमन पॉइंट स्थित नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स (NCPA) में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था। यहां से उनकी अंतिम यात्रा वर्ली श्मशान घाट पहुंची। यहां राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।रास्ते भर उनको अंतिम विदाई देने लोग उमड़ पड़े थे।
पीएम मोदी,राहुल सहित नेता उद्योगपतियों ने दी श्रद्धांजलि
पीएम नरेंद्र मोदी,विपक्ष के नेता राहुल गांधी,केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, मुकेश अंबानी और कुमार मंगलम बिड़ला समेत राजनीति, खेल और बिजनेस से जुड़ी कई हस्तियों ने टाटा को श्रद्धांजलि दी। अमिताभ बच्चन ने लिखा कि एक युग का अंत हो गया।
रतन टाटा के पार्थिव शरीर का वर्ली स्थित इलेक्ट्रिक अग्निदाह में अंतिम संस्कार किया गया. लेकिन, पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार का तरीका एकदम अलग होता है. तो आइए जानते हैं क्यों और कैसे होता है पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार….
पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार का तरीका है अलग
जिस तरह से हिंदुओं में शव जलाया जाता है, इस्लाम और ईसाई धर्म में शव को दफनाया जाता है. लेकिन, पारसी लोगों में शव को आसमान को सौंपते हुए ‘टावर ऑफ साइलेंस’ के ऊपर रख दिया जाता है.
क्या होता है टावर ऑफ साइलेंस?
टावर ऑफ साइलेंस को दखमा कहा जाता है. टावर ऑफ साइलेंस एक गोलाकार ढांचा होता है, जिसके ऊपर ले जाकर शव को सूरज की धूप में रख दिया जाता है. जिसके बाद गिद्ध शव को आकर खा जाते हैं. गिद्धों का शवों को खाना भी पारसी समुदाय के रिवाज का ही एक हिस्सा है. इस अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को दोखमेनाशिनी कहा जाता है.
पारसियों में शव को सूरज की किरणों के सामने रख दिया जाता है, जिसके बाद शव को गिद्ध, चील और कौए खा लेते हैं. पारसी धर्म में किसी शव को जलाना या दफनाना प्रकृति को गंदा करने जैसा माना जाता है.
मृत शरीर के इस तरह अंतिम संस्कार के पीछे ये है पारसियों की मान्यता
पारसी समाज में शव को खुले आसमान में छोड़ देने के पीछे भी एक महत्वपूर्ण कारण होता है. दरअसल, पारसी समुदाय में माना जाता है कि मृत शरीर अशुद्ध होता है. पारसी लोग पर्यावरण प्रेमी होते हैं इसलिए वह शरीर को नहीं जलाते हैं क्योंकि इससे अग्नि तत्व अपवित्र हो जाता है. वहीं, पारसियों में शवों को दफनाया भी नहीं जाता है क्योंकि इससे धरती प्रदूषित हो जाती है और पारसी शवों को नदी में बहाकर भी अंतिम संस्कार नहीं कर सकते हैं क्योंकि इससे जल तत्व प्रदूषित होता है. पारसी धर्म में पृथ्वी, जल, अग्नि तत्व को बहुत ही पवित्र माना गया है. परंपरावादी पारसियों का कहना है कि शवों को जलाकर अंतिम संस्कार करना धार्मिक नजरिए से सही नहीं है।
साइरस मिस्त्री का भी नहीं हुआ था पारसी रीति रिवाज से अंतिम संस्कार
जिस तरह से रतन टाटा का अंतिम संस्कार इलेक्ट्रिक अग्निदाह के द्वारा किया गया. ठीक उसी तरह टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का भी अंतिम संस्कार पारसी रीति-रिवाज के द्वारा न होकर इलेक्ट्रिक अग्निदाह में किया गया था. जानकारी के लिए आपको बता दें, साइरस मिस्त्री की मृत्यु 4 सितंबर 2022 को महाराष्ट्र के पालघर में रोड एक्सीडेंट में हुई थी.