TTN Desk
गुरुग्राम की एक विशेष पॉक्सो अदालत ने एबीपी न्यूज़ की वरिष्ठ पत्रकार और वाइस प्रेसिडेंट ,प्रमुख एंकर चित्रा त्रिपाठी की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका उस समय दायर की गई थी जब इस महीने की शुरुआत में पॉक्सो अधिनियम के तहत चित्रा त्रिपाठी और अन्य पत्रकारों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ था।
O व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना होगा
अदालत ने केवल जमानत याचिका ही खारिज नहीं की, बल्कि व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट के लिए दायर उनके आवेदन को भी नामंजूर कर दिया। चित्रा त्रिपाठी ने अदालत में तर्क दिया था कि वह महाराष्ट्र चुनाव की कवरेज और राज्य के उपमुख्यमंत्री का साक्षात्कार लेने के लिए नासिक की यात्रा कर रही हैं, जिससे उन्हें कोर्ट में पेश होने में असुविधा होगी। हालांकि, अदालत ने उनके इस तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह कोर्ट की प्रक्रिया को गंभीरता से न लेने का संकेत है।
O क्या है मामला ?
यह मामला पॉक्सो अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act) से संबंधित है, जिसमें चित्रा त्रिपाठी, दीपक चौरसिया, अजीत अंजुम सहित कुल आठ पत्रकारों के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई थी। आरोप है कि इन पत्रकारों ने अपने कार्यक्रमों में एक बच्चे के प्रकरण को सार्वजनिक रूप से प्रसारित कर उसकी निजता का उल्लंघन किया था।नाबालिग बच्ची का नाम आसाराम से जोड़कर चैनल पर दिखाए जाने से संबंधित है जिसमें बच्ची की पहचान को उजागर कर दिया गया! नाबालिग लड़की से जुड़े अश्लील और मॉर्फ्ड कंटेंट के प्रसारण के इस प्रकरण में कई पत्रकार फँसे हैं। आसाराम बापू के लोगों ने मुक़दमा किया है।यह मामला 2013 में प्रसारित कार्यक्रम का है,जिस पर 2015 में गुरुग्राम के थाने में एफआईआर हुई।
O अन्य पत्रकार भी रडार पर
इस केस में वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया, अजीत अंजुम और कुछ अन्य प्रमुख नाम शामिल हैं। सभी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि मीडिया की स्वतंत्रता के अधिकार का उपयोग करते हुए किसी भी व्यक्ति, विशेष रूप से बच्चों की सुरक्षा और निजता से समझौता नहीं किया जा सकता।
O क्या कहा अदालत ने?
कोर्ट ने टिप्पणी की कि मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन किसी भी पत्रकार को कानून के ऊपर नहीं रखा जा सकता। अदालत ने इसे एक संवेदनशील मामला बताया और कहा कि इसमें तय प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है।
O आगे की सुनवाई
अब इस मामले में अगली सुनवाई और आरोपित पत्रकारों की व्यक्तिगत उपस्थिति का इंतजार किया जा रहा है। इस प्रकरण ने पत्रकारिता जगत में एक बड़ी बहस छेड़ दी है कि मीडिया की आजादी और कानून के दायरे के बीच संतुलन कैसे बनाए रखा जाए।
यह मामला यह भी दर्शाता है कि संवेदनशील मामलों की रिपोर्टिंग के दौरान पत्रकारों को अत्यधिक सतर्क और जिम्मेदार होना चाहिए।