*मनोज शर्मा*
कोरबा।नगर निगम कोरबा के नवनिर्वाचित सभापति नूतन सिंह ठाकुर ने आज सोमवार को गणेश पूजन कर पदभार ग्रहण कर लिया।उन्हें आज ही बीजेपी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया है हालांकि उनका कहना है कि वे बीजेपी के कार्यकर्ता थे और रहेंगे।इधर जानकारों का कहना है कि वे अगले दो साल तक तो निर्विघ्न रूप से सभापति बने रहेंगे क्योंकि निगम अधिनियम के मुताबिक उसके बाद ही उन्हें हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है।तब तक पद से हटाने का एक ही रास्ता है कि वे खुद इस्तीफा दे देंगे और हमारे सूत्रों ने साफ किया है कि इस तरह की पेशकश को नूतन सिंह ने खारिज कर दिया।
O बीजेपी का ही कार्यकर्ता हूं ,पार्टी नोटिस देती तो जवाब देता : नूतन सिंह
निगम सभापति नूतन सिंह ने कहा कि भाजपा से निष्कासन का समाचार मिडिया के माध्यम से मिला है। पार्टी नोटिस देती तो जरूर बताता कि हितानंद अग्रवाल जी को पार्षदो ने क्यों पसंद नहीं किया। मैं भाजपा का छोटा कार्यकर्ता हूं और रहूंगा। 33 भाजपा पार्षदो ने सभापति के लिए मुझे जनादेश दिया है। सभापति के रूप में निगम के 67 पार्षदो के हितों की रक्षा करने, कोरबा शहर का चौतरफा विकास करने तथा नियमों के अनुसार निगम को चलाने का दायित्व पूरी निष्ठा से पूरा करता रहुंगा।
O दो साल तक नहीं आ सकता अविश्वास प्रस्ताव
एक अधिकारी ने बताया कि नगर निगम के निर्वाचन प्रावधान के अधिनियम में पूर्व में सभापति के खिलाफ उनके पद ग्रहण करने के बाद एक वर्ष तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता बाद में बीजेपी शासनकाल के दौरान ही यह अवधि एक वर्ष से बढ़ा कर दो वर्ष कर दी गई।और एक बात कि नगर निगम निर्वाचन में दलबदल कानून का किसी भी तरह कोई प्रावधान भी न लागू नहीं होता। एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि दो साल बाद यदि अविश्वास प्रस्ताव लाया भी जाता है तो अविश्वास प्रस्ताव पास कराने कुल में से 3/4 पार्षदों का पक्ष में होना चाहिए जबकि सभापति को अपनी कुर्सी बचाने 1/4 वोट ही जुटाने होंगे।हालांकि तब तक हसदेव में बहुत पानी बह चुका होगा। और ये एक चौथाई पार्षदों का समर्थन जुटाना उस स्थिति में कठिन भी नहीं होगा जब 11 कांग्रेस और 11 निर्दलीय पार्षद है8।साफ है कि अब अगले दो वर्ष तक सभापति का दायित्व नूतन सिंह के पास ही रहेगा और शायद आगे भी।
O अब आगे क्या..?
यह तो साफ ही है कि नगर निगम में सभापति चुनाव का जो एपिसोड हुआ है उसने न केवल ऊर्जाधानी वरन राजधानी तक बीजेपी सत्ता और संगठन में हड़कंप मच गई है।अब इस प्रकरण को पार्टी के वो आला नेता जो सत्ता से दरकिनार हो गए ,वो अपने अपने एंगल से भुनाने की कोशिश में जुट गए है।सभापति को तो पार्टी ने निष्कासित कर दिया किन्तु उन पार्षदों का क्या जिन्होंने भीतरघात कर पार्टी नेतृत्व की हनक को फीका कर दिया।नूतन सिंह के सभापति नामांकन के प्रस्तावक और समर्थक वार्ड 66 के पार्षद बहत्तर सिंह और वार्ड 50 की पार्षद सीमा पटेल रही।ये दोनों को ही पार्टी ने टिकट नहीं दी तो ये निर्दलीय लड़ कर पार्षद बने है।वहीं सवाल खड़ा होता है कि प्रस्तावक ,समर्थक बीजेपी के पार्षद क्यों नहीं बने..? जाहिर है ये रणनीति थी कि नतीजे के बाद कोई पार्टी पार्षद अनुशासनात्मक कार्यवाही की जद में न आए।सवाल ये है कि क्या पार्टी अब उन पार्षदों के खिलाफ कार्यवाही करेगी जिन्होंने पार्टी के घोषित प्रत्याशी हितानंद अग्रवाल को वोट नहीं दिया।बीजेपी के कुल 45 पार्षद है यदि मान भी लिया जाय कि अग्रवाल को मिले सभी 18 वोट बीजेपी पार्षदों और महापौर का था तब भी 28 पार्टी पार्षदों ने तो उन्हें वोट नहीं ही दिया।अब देखना होगा पार्टी आलाकमान इस सारी परिस्थिति में आगे क्या निर्णय लेता है।