फोटो: पीएम मोदी के साथ केबिनेट बैठक में मंत्रीगण
TTN Desk
वन नेशन वन इलेक्शन प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी दे दी गई है. मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति रामदास कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी जिसने तय समय में अपनी रिपोर्ट दे दी।बुधवार की कैबिनेट की बैठक में इस पर चर्चा के बाद वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी यानी 2029 के लोकसभा चुनाव में लोकसभा और सभी प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे. जिसके लिए कुछ विधानसभा के कार्यकाल को आगे बढ़ाया और कुछ को पहले समाप्त किया जा सकता है।हालांकि अभी इस पर विपक्षी दलों की राय आनी बाकी है।इसके साथ ही ये भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगली बार 543 लोकसभा सीटों के बजाय 750 सीटों पर चुनाव कराए जाएंगे. दरअसल 2002 के एक परिसीमन के तहत 2026 तक लोकसभा की सीटें बढ़ाने पर रोक लगी है. कहने का आशय ये है कि उसके बाद की जनगणना के आधार पर ही परिसीमन हो सकता है. अब जैसा कि गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है जनगणना भी 2027 में होनी है. ऐसे में उसके बाद होने वाले चुनावों के मद्देनजर लोकसभा सीटें भी बढ़ सकती हैं.
2021 में होने वाली जनगणना नहीं हुई, कोरोना बड़ा कारण
हर 10 साल में जनगणना होती है लेकिन 2021 में ऐसा नहीं हो सका. कोरोना के कारण जनगणना नहीं हो पाई. कहा जा रहा है कि ये कार्य अब 2027 में होगा. वहीं 2002 के कानून में ये व्यवस्था की गई थी कि 2026 के बाद की जनगणना के आधार पर परिसीमन होगा. परिसीमन का आशय यहां पर जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों के निर्धारण से है. 2002 में जब ये परिसीमन कानून बनाया गया था तो उसका मतलब ये था कि 2026 के बाद बढ़ती जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटें बढ़ाई जा सकती हैं. चूंकि एक दशक बाद ही जनगणना होती है तो उस वक्त ये माना गया कि 2002 के परिसीमन कानून का आशय ये है कि 2031 की जनगणना के बाद ही परिसीमन होगा. लेकिन कोरोना के कारण 2021 में होने वाले कार्य को 2027 तक टाल दिया गया. लिहाजा यदि 2027 में जनगणना का कार्य हुआ तो फिर उसके तुरंत बाद 2031 में करना जल्दबाजी ही होगी. लिहाजा 2002 के कानून के लिहाज से 2027 की जनगणना को आधार मानकर परिसीमन का कार्य किया जा सकता है और उस आधार 2029 में ही लोकसभा सीटें बढ़ाई जा सकती हैं.
क्या एक तिहाई सीटें होंगी महिलाओं के लिए..?
पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार ने इस अधिनियम के तहत अगले चुनाव तक एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का भी प्रावधान किया है. जनगणना, परिसीमन के अतिरिक्त ये कारण भी महत्वपूर्ण होगा लिहाजा सीटों की संख्या बढ़ने की बात हो रही है.
एक पेंच फंसा है उत्तर दक्षिण का
सर्वविदित है कि परिसीमन के सवाल पर दक्षिण के राज्य बेचैन हैं. उसकी वजह ये है कि वहां पर जनसंख्या वृद्धि दर को नियंत्रित करने में काफी हद तक सफलता पाई गई है. इसका असर ये हो रहा है कि उत्तर की तुलना में दक्षिण के राज्यों में जनसंख्या की बढ़ोतरी कम हुई है. लिहाजा यदि परिसीमन का आधार केवल जनसंख्या होगा तो दक्षिण के राज्यों के हिस्से कम सीटें आएंगी और जो भी सीटें बढ़ेंगी वो उत्तर के राज्यों में बढ़ेंगी. इससे दक्षिण के राज्यों का संसद में प्रतिनिधित्व कम हो सकता है. दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार इसका समाधान तलाश रही है और आनुपातिक प्रणाली का फॉर्मूला निकाला जा रहा है जिसमें दक्षिण के हितों का ध्यान रखा जाएगा.