TTN News Desk
बंगलादेश के इतिहास की सबसे मजबूत नेता माने जाने वाली शेख़ हसीना ने सोमवार को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर देश छोड़ दिया. बड़ी तादाद में प्रदर्शनकारियों ने उनके निवास पर धावा बोल दिया. इससे पहले शेख हसीना अपनी बहन के साथ सेना के विमान से भारत के गाजियाबाद स्थित हिंडन एयर बेस पहुंची।यहां से वह लंदन या फिनलैंड के लिए उड़ान भरेगी यह चर्चा है।उनके भारत पहुंचने की बात पूरी तरह से गुप्त रखी गई।उनके विमान के त्रिपुरा या पश्चिम बंगाल में कहीं उतरने की अटकलें थी पर वह दिल्ली के पास हिंडन में उतरा।उधर बांग्लादेश में हजारों आंदोलनकारी पीएम आवास में पत्थरबाजी करते हुए घुस गए।आर्मी चीफ ने जल्द ही अंतरिम सरकार बनाने की बात कही है।
शांत लेकिन मज़बूत मानी जाने वाली शेख़ हसीना देश के संस्थापक राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं और कई बार अपनी जान पर हमलों और संकट के समय से उबर चुकी हैं.
अपने कार्यकाल के दौरान शेख़ हसीना की सरकार देश के सीमा सुरक्षा बलों के हिंसक विद्रोह से भी बच चुकी है. उसमें 57 सैन्य अधिकारी मारे गए.
वो तीन विवादित आम चुनाव चुनाव जीत चुकी हैं. इन चुनावों की अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी आलोचना की है.
मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों और विपक्षी दलों के कई बार व्यापक प्रदर्शनों का सामना कर चुकी हैं.
लेकिन देश भर में छात्रों के प्रदर्शन से शुरू हुआ ये मौजूदा संकट उनके राजनीतिक जीवन की सबसे मुश्किल चुनौती साबित हुआ.
छात्रों के प्रदर्शन में समूचा देश घिर गया और विपक्षी दल छात्रों के पीछे एकजुट हो गए.
बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने विवादित कोटा व्यवस्था को समाप्त कर छात्रों की मुख्य मांग को तो पूरा कर दिया लेकिन अंसतोष समाप्त नहीं हुआ.
इन प्रदर्शनों में 100 से अधिक छात्र मारे गए जबकि बीते सप्ताह सरकार के ख़िलाफ़ शुरू हुए जन-आंदोलन के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और बड़ी तादाद में लोग मारे गए हैं.
छात्र आंदोलन पड़ा भारी
बांग्लादेश में छात्रों ने सरकारी नौकरियों में मुक्ति संग्राम के सेनानियों के परिजनों के लिए 30 प्रतिशत के आरक्षण को समाप्त करने की मांग के साथ विरोध शुरू किया था.
ये आरक्षण 1971 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजनों के लिए लागू था.
हाई कोर्ट के इस विवादित कोटा व्यवस्था को बरक़रार रखने के बाद छात्रों के प्रदर्शन और तेज़ हो गए.
सत्ताधारी दल के कार्यकर्ताओं के प्रदर्शनकारियों पर हमला करने के बाद ये प्रदर्शन और उग्र हो गए.
हालांकि, बाद में बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने इस कोटा व्यवस्था को लगभग समाप्त ही कर दिया.
वहीं सरकार की तरफ़ से अदालत में पेश हुए महाधिवक्ता ने भी यही संकेत दिए थे कि सरकार भी इस मुद्दे का समाधान करना चाहती है.
देश को तरक्की के रास्ते ला गरीबी से निकाला
कई लोगों का मानना है कि पिछले सोलह सालों में प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजिद ने बांग्लादेश को ग़रीबी से बाहर निकाला है.
कुछ लोग ये भी मानते हैं कि बांग्लादेश ने जो प्रगति की है, वो शेख़ हसीना की वजह से है.
जानकारों का कहना है कि यह शेख़ हसीना के लगातार बढ़ रहे तानाशाही शासन के बावजूद हुआ है. लेकिन उनकी स्थिति जितनी कमज़ोर अब है, उतनी पहले कभी नहीं थी.
तानाशाही प्रवृति से समाज में फैला असंतोष
बीबीसी की एक रिपोर्ट में ओस्लो यूनिवर्सिटी से जुड़े डॉ. मुबशर हुसैन मानते हैं कि ये हालात एक दिन में नहीं बने हैं बल्कि ‘प्रेशर कुकर की तरह फटे हैं.’
डॉ मुबशर हुसैन ने एशिया में तानाशाही पर गहन अध्ययन किया है.
डॉ. हसन ने बीबीसी बांग्ला से कहा, ‘याद रखिए, हम ऐसे देश की बात कर रहे हैं जिसका प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक रूस से भी नीचे है.’
वे कहते हैं, “शेख़ हसीना और उनकी पार्टी ने मुक्ति संग्राम की भावना का अति राजनीतिकरण किया, साल दर साल नागरिकों को मताधिकार के मूल मानवाधिकार से वंचित रखना, और उनकी सरकार की तानाशाही प्रवृति ने समाज के एक बड़े वर्ग को आक्रोशित कर दिया. दुर्भाग्यवश वो कभी भी समूचे देश की प्रधानमंत्री नहीं बनीं बल्कि एक समूह की ही प्रधानमंत्री बनकर रह गईं.”
डॉ. हसन पिछले सप्ताह से शुरू हुए घटनाक्रम से बिलकुल भी हैरान नहीं हैं.